गाजियाबाद,(सुशील कुमार शर्मा,स्वतंत्र पत्रकार)। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त देश के दिग्गज पत्रकारों में शुमार गाजियाबाद निवासी कुलदीप तलवार (90 वर्ष) का गत 6 दिसंबर को निधन हो गया।मंगलवार को चौधरी भवन में शोक सभा में सभी वक्ताओं ने उनके अपने प्रति स्नेह और आत्मीय व्यवहार का जिक्र किया। वह ऐसी ही शख्सियत थे। हर परिचित को फोन कर वह कुशल क्षेम पूछते रहते थे। पत्रकारों को भी उनकी खबर पर उनकी प्रतिक्रिया तत्काल होती थी। यही कारण था उनके परिचितों का दायरा बहुत बड़ा था और सभी उन्हें अपना करीबी समझते थे। मुझसे वह 40 वर्ष पूर्व मेरे पिता वरिष्ठ पत्रकार श्याम सुंदर वैद्य ,जो “तड़क वैद्य” के नाम से प्रसिद्ध थे (1911-1984) उनके निधन के दिन मिले थे। उन्होंने मुझसे कहा कि बेटा वैद्य जी नहीं रहे लेकिन वह मेरे अभिन्न मित्र थे। तुम कोई चिंता नहीं करना। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं। उन्होंने अपने कहे को निभाया भी। कभी भी फोन कर कुशल क्षेम पूछते रहते थे। मैं भी जब समय मिलता उनके पास जाता रहता था। जब वर्ष 2012 में मेरे रीढ़ की हड्डी की दो स्लिप डेमेज हो गयी थी और और मेरा पूरा शरीर सुन्न हो गया था जिसका बाद में आपरेशन हुआ था। वह बडे चिंतित रहे थे। मेरे संस्मरणों पर वह मेरा बहुत उत्साह बढ़ाते थे। जब लगभग 6 वर्ष पूर्व मुंबई फिल्म नगरी में सक्रिय गाजियाबाद के लोगों की जानकारी के मेरे लेख साथी पत्रकारों के अखबारों में प्रकाशित हुए तो उन्होंने मुझे ऐसी जानकारी दी जो किसी ने ख्वाब में भी नहीं सोची था। उन्होंने बताया कि मुंबई फिल्म नगरी के पहले महानायक के.एल. सहगल जो अभिनेता और गायक थे,1940 के दशक में गाजियाबाद के निवासी थे। वह यहां रेलवे में नौकरी करते थे और भूड भारत नगर में रहते थे। गाजियाबाद में उन्होंने संगीत सिखाने का केंद्र भी खोला था।तब फिल्म नगरी कलकत्ता थी, यहीं से वह कलकत्ता गये थे और वहां से मुंबई। उन्होंने ही जानकारी दी कि ऋषि कपूर और डिंपल की फिल्म “बॉबी” के गानों से पूरे देश में तहलका मचाने वाले गायक शैलेन्द्र सिंह भी गाजियाबाद के बेटे हैं। वह स्थानीय शम्भू दयाल इंटर कालेज के तत्कालीन प्रिंसिपल मल्होत्रा जी की बेटी के पुत्र हैं। उन्होंने बताया कि माडल टाउन (एम एम एच कालेज रोड) पर पंजाब एक्सपैलर के मालिक हरीश चन्द्र शर्मा जी की कोठी थी (वह भी मेरे पिता जी के मित्र थे), उनकी कोठी के पास एक नरूला परिवार रहता था। जिनका बेटा जोगेन्दर सिंह बहुत हैंडसम था। उसके घर के सामने शम्भू दयाल इंटर कालेज के तत्कालीन प्रिंसिपल मल्होत्रा जी का परिवार रहता था। जोगेन्दर और सक्सेना जी की बेटी की लव-मैरिज हुई थी। जोगेन्दर मुंबई चला गया और वहां वह प्रसिद्ध फिल्म निर्माता वी शांताराम का असिस्टेंट बन गया।उनकी सभी फिल्मों में वह सह नायक रहता था। उसी का बेटा शैलेन्द्र सिंह है।
उल्लेखनीय है कुलदीप तलवार के चाचा विभाजन के पहले से ही मुंबई फिल्म नगरी में सक्रिय थे। फिल्म नीलमपरी में उन्होंने दिग्गज अभिनेत्री गीता बाली के पिता का रोल किया था। फिल्म खुश्बू में अभिनेत्री श्यामा के पिता का रोल किया था। उनके छोटे भाई शक्तिमान तलवार भी बडे फिल्म लेखक हैं।उनकी लिखी सनी देओल की फिल्म “गदर -एक प्रेम कथा” और “गदर-2” देश में तहलका मचा चुकी हैं।शक्तिमान का बेटा भी स्टेंड अप कामेडियन है और उसके शो विदेशों में धूम मचा रहे हैं।
कुलदीप तलवार का परिवार 1947 में विभाजन के बाद गाजियाबाद आया था। वह भारत सरकार के भारतीय खाद्य निगम के महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त थे। देश के तमाम बड़े अखबारों में उनके साक्षात्कार और लेख छपते रहे हैं। विदेशी मामलों विशेष तौर पर पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंगला देश और पाक अधिकृत कश्मीर की राजनीति पर उनके विचारपूर्ण लेख तमाम अखबारों में छपते रहे हैं। उनकी पैदाइश पाकिस्तान के खुशआब की है। उन्होंने बताया कि मां हिन्दी का कायदा पढी थी। इसलिए हिन्दी और उर्दू दोनों का ज्ञान था। वहीं काम आया। उन्होंने बताया कि अभिनेता अमरीष पुरी ने शक्तिमान से कहा था कि तुम्हारी उम्र तो ज्यादा नहीं है फिर फिल्म के इतने बेहतरीन डायलॉग कैसे लिख लेते हो। तब शक्तिमान ने उन्हें बताया कि इसमें मैं अपने बड़े भाई की मदद लेता हूं। उन्होंने उनसे मिलने की इच्छा जताई तो एक फिल्मी शादी में आमरीष पुरी बड़ी आत्मीयता से उनसे मिले थे।
उल्लेखनीय है कुलदीप तलवार लगभग दो दशक से भी अधिक समय तक हिंदूस्तान टाइम्स समूह की प्रसिद्ध पत्रिका “कादम्बिनी” के लिए उर्दू शायरी के स्तंभ “इनके भी बयां जुदा जुदा” लिखते रहे हैं। वह धर्मयुग,सा. हिन्दुस्तान, ब्लिट्ज, दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक नवभारत टाइम्स, दैनिक ट्रिब्यून, नवनीत, कादम्बिनी, रंग चकल्लस,संडेमेल आदि में हास्य व्यंग बराबर लिखते रहे हैं। बच्चों के लिए उन्होंने कहानियां भी लिखी हैं । उनके द्वारा लिखित पुस्तक “हंसी हंसी में” भारत सरकार के प्रकाशन विभाग ने प्रकाशित की थी।
जिसके छह संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। बच्चों के लिए लिखी उनकी पुस्तक “नाना – नानी की कहानियां” हिन्द पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई थी। उनकी पुस्तक “पेंगुइन” व हास्य-व्यंग संग्रह “गुस्ताखी माफ” भी काफी सराही गई। उनकी गत वर्ष प्रकाशित पुस्तक “गुदगुदाती हंसाती कलमकारों की छोटी -छोटी बातें” देश के विख्यात शायरों व कवियों के द्वारा मंचों पर आपसी छेड़छाड़ की रोचक व मनोरंजक स्मृतियों का पिटारा है। उनकी यह पुस्तक विख्यात व्यंग्यकार पद्मश्री के पी सक्सेना को समर्पित है। पुस्तक के प्रारंभ में उन्होंने कहा है कि उनकी गुदगुदाती स्मृतियों और कलमतराशी ने इस नाचीज़ को भी अपने रंग में रंग दिया ।
उनकी इस पुस्तक पर डॉ. प्रेम जनमेजय कहा है कि साहित्य की एक वो दुनिया है जो किताबों, पत्रिकाओं,
अखबारों आदि के माध्यम से साहित्यिक अभिरुचि के पाठकों तक पहुंचती है। साहित्य की एक वो भी दुनिया है जहां साहित्य की महफ़िल जमी होती है और उस महफ़िल में रचनाकार बातों – बातों में कुछ उल्लेखनीय, मजेदार या गहरी बात कह देते हैं।इस अनोपचारिक दुनिया में कहे को पकड़े नहीं तो बहुत कुछ कहा अनकहा रह जाता है। बातें बहुत होती हैं लेकिन अधिकांश बातें आई-गई हो जाती है। यदि वहां कुलदीप तलवार जैसा शख्स हो, जो उड़ते शब्दों को पकड़ने में माहिर हो , तो सारे मौखिक शब्द अक्षरों में बदल जाते हैं। कुलदीप तलवार की इस प्रतिभा को धर्मवीर भारती,कमलेश्वर आदि सम्पादकों ने पहचाना और अपनी महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में उर्दू -हिन्दी के लेखकों से जुड़े मजेदार और गम्भीर छोटे -मोटे किस्सों को बडा करके छापा।
कुलदीप तलवार अस्वस्थता के बावजूद इस आयु में भी लिखने और पढ़ने में रहते थे। अभी वह स्थानीय कवियों और शायरों पर पुस्तक लिख रहे थे।उसको शीघ्र प्रकाशित कराना चाहते थे। लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। कीर्तिशेष श्रद्धेय कुलदीप तलवार जी को नमन है।