गाजियाबाद। आजकल पर्यावरणीय संकट एक गंभीर समस्या बन चुका है, और प्लास्टिक प्रदूषण इसका प्रमुख कारण है। प्लास्टिक बोतलें और पाउच, जो हर जगह फैलते जा रहे हैं, न केवल प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि यह पशु-पक्षियों और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी खतरे का कारण बनते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए एक नई और क्रांतिकारी पहल सामने आई है, जिसका नाम है वाटिका। यह परियोजना पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।
वाटिका परियोजना की शुरुआत अश्वनी शर्मा (फाउंडर, अखंड भारत मिशन) और उनके मित्र रोहित आर्या (फाउंडर, एक कदम) ने की है। उनका विश्वास है कि यह पहल न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण में बदलाव ला सकती है। उनका उद्देश्य है कि इस परियोजना से प्लास्टिक प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम किया जा सके।
इस परियोजना के तहत जल संरक्षण और पर्यावरणीय संकट को ध्यान में रखते हुए बायोडिग्रेडेबल (कंपोस्टेबल) पानी की बोतलें और पाउच तैयार किए जा रहे हैं। इन बोतलों का उद्देश्य पारंपरिक प्लास्टिक बोतलों का स्थान लेना है, जो पर्यावरण के लिए अत्यधिक हानिकारक होती हैं। परियोजना का पहला चरण कुम्भ मेला 2024-25 में 1.5 करोड़ जल पाउचों का निःशुल्क वितरण करने का है, ताकि लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जा सके और प्लास्टिक के उपयोग को कम किया जा सके।
वाटिका की प्रमुख विशेषता इसके द्वारा निर्मित कंपोस्टेबल पानी की बोतलें हैं, जो पारंपरिक प्लास्टिक की बोतलों का पर्यावरण-friendly विकल्प होंगी। ये बोतलें पूरी तरह से जैविक रूप से नष्ट हो सकती हैं, जिससे प्रदूषण का स्तर कम होगा। इन बोतलों को बनाने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जाएगा, जो जल के संरक्षण में मदद करती हैं और पर्यावरण के लिए सुरक्षित भी हैं।
इस पहल का उद्देश्य सिर्फ पर्यावरण संरक्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लोगों में जल के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने का भी प्रयास करेगी। कुम्भ मेला जैसे विशाल आयोजनों में 1.5 करोड़ जल पाउचों का निःशुल्क वितरण ऐतिहासिक कदम साबित होगा, जिससे करोड़ों लोग पानी के महत्व को समझ पाएंगे। यह जल संरक्षण की दिशा में एक सशक्त कदम होगा, जो न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रभावी रहेगा। जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में यह कदम और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन और जल संकट एक-दूसरे से गहरे रूप से जुड़े हुए हैं।
अश्वनी शर्मा का कहना है कि वाटिका परियोजना को वैश्विक स्तर पर बड़ा परिवर्तन लाने के लिए तैयार किया गया है। उनका उद्देश्य है कि “वाटिका को पर्यावरण के क्षेत्र में एक वैश्विक नाम बनाया जाए। इसके माध्यम से हम न केवल प्लास्टिक बोतल के इस्तेमाल को कम करने की दिशा में काम करेंगे, बल्कि जल संरक्षण के महत्व को भी हर व्यक्ति तक पहुंचाएंगे। हम चाहते हैं कि हर व्यक्ति पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझे और अपना योगदान दे।” इसके अलावा, उन्होंने कहा कि “कुछ महत्वपूर्ण व्यक्तियों एवं संस्थाओं से गहन, समापन संपर्क में हैं और योजना की रूपरेखा को जल्द ही सार्वजनिक कर दिया जाएगा।”
इसके अलावा, वाटिका परियोजना विभिन्न देशों के पर्यावरण संगठनों और संस्थाओं के साथ साझेदारी कर काम करने की योजना बना रही है। इसके माध्यम से यह पहल वैश्विक स्तर पर फैलाने की उम्मीद है, ताकि पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी और जागरूकता बढ़ सके। यह परियोजना अन्य सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर काम करने वाले संगठनों के लिए प्रेरणा स्रोत भी बनेगी।
अश्वनी शर्मा ने आगे कहा कि “वाटिका का यह कदम न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक बड़ा परिवर्तन ला सकता है। यह पहल सिद्ध करेगी कि जब समाज के विभिन्न हिस्से एकजुट होकर काम करते हैं, तो वे एक स्थायी और सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। वाटिका के माध्यम से हम यह भी सिद्ध कर सकते हैं कि एक छोटे से कदम से बड़े बदलाव की शुरुआत हो सकती है। यह पहल आने वाली पीढ़ियों के लिए एक नई सोच और दिशा का निर्माण करेगी।”
वाटिका अपने वैश्विक प्रयासों के तहत जलवायु परिवर्तन से प्रभावित क्षेत्रों में भी राहत और संरक्षण कार्यों में सक्रिय रूप से योगदान देगा। इसकी गतिविधियाँ सिर्फ प्लास्टिक प्रदूषण तक सीमित नहीं रहेंगी, बल्कि जलवायु परिवर्तन, वन्यजीव संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।
इस प्रकार, वाटिका एक सामाजिक और वैश्विक परिवर्तन लाने के लिए तैयार है, जो पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी को और अधिक सशक्त बनाएगा और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ महत्वपूर्ण कदम उठाएगा। यह कदम न केवल एक नई शुरुआत है, बल्कि यह हमारे पर्यावरणीय भविष्य के लिए आशा की किरण भी है। यह सुनिश्चित करेगा कि आने वाले समय में हम एक स्थायी और सुरक्षित पर्यावरण की दिशा में ठोस कदम उठा सकें।