नई दिल्ली। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली तथा इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में इसके संवेत सभागार में राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2020के आलोक में संस्कृत पुस्तकालयों का विकसित भारत 2047 के आलोक में योगदान को लेकर उद्घाटन किया गया।
आज के इस अवसर पर केन्द्रीय राज्य शिक्षा मन्त्री ,भारत सरकार ,माननीय डा सुकान्त मजुमदार ने मुख्य अतिथि के रुप में बोलते हुए कहा कि ज्ञान भारतम् मिशन देश भर के सभी संस्कृत पुस्तकालयों को केन्द्रकरण में सहायक होगा । उन्होंने आगे यह कहा कि सनातन का अर्थ चिर नूतन तथा चिर पुरातन भी होता है उस शक्ति का ज्वलन्त पर्याय संस्कृत भाषा तथा इसके साहित्य में ही है । वस्तुत: संस्कृत में बहुत शक्ति है । लेकिन यह बात भी कोई कम महत्त्वपूर्ण नहीं है इससे कौन लोग जुड़े हैं ? संस्कृत एक ऐसी प्राणदायी शक्ति है जो प्रत्येक युग में काम आती है। यही कारण है कि संस्कृत में बहुत शक्ति है और यह न केवल भारत, अपितु विश्व का प्राण है । साथ ही साथ इस बात पर भी जोड़ देते हुए कहा कि औपनिवेशिक मानसिकता के कारण आईटी के दौर में कट एंड पेस्ट ( काटो और छापो) की प्रवृत्ति से हम बच नहीं पा रहे हैं । बल्कि सच तो यह है आज यह समय आ गया है कि विकसित भारत -2047 के लिए मूल भारतीय चिन्तन की समन्वित चिन्तन की श्रीवृद्धि करना समय की मांग है । डा मजुमदार ने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के कारण सभी भारतीय चाहे वह ,भारत में हों या भारत से बाहर हों , उनकी मानसिकता में बहुत ही परिवर्तन आया है और वे अब आत्मविश्वास तथा स्वाभिमान के भावना से भरे हैं । भारतीय ज्ञान परम्परा की चर्चा करते उन्होंने दुनिया के सर्वप्रथम सर्जन सूश्रूत की भी चर्चा की और कहा कि कोशिका (सेल) की भी जानकारी सबसे पहले भारतीय ने ही दुनिया को बताया । उसी प्रकार आज के संदर्भ में टाईम ट्रेवल की चर्चा करते भारतीय दर्शन में काल की अवधारणा की भी बात कही ।
इस अवसर पर भारतीय जीवन दृष्टि के संवाहक और भारतीय शिक्षा मंडल के राष्ट्रीय संगठन सचिव, श्री शंकरानन्द बीआर , प्रो शान्ति श्री धूलीपुडी पण्डित , कुलपति , जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली तथा डा सच्चिदान्द जोशी , सदस्य सचिव , आईजीएनसीए ,प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी , कुलपति , केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के साथ साथ इस संयोजन के अध्यक्ष और आईजी एनसीए के डीन ( प्रशासन) प्रो रमेश सी. गौर तथा इसके संयोजक डा पी एम गुप्ता, विश्वविद्यालय पुस्तकालयाध्यक्ष , केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय , दिल्ली ने भी अपने विचार रखें ।
श्री शंकरानन्द बी आर ने कहा कि भारतवर्ष के अमरत्व का कारण श्रुति और स्मृति ही हैं। श्रुति जहां हमें जड़ों से जोड़ती है वहीं स्मृति जड़ को सुरक्षित रखते हुए आगे बढ़ने का भी अवसर देता है । यही सनातनी भाव है और इसी में भारतवर्ष रचा बसा है । उन्होंने नवधा भक्ति पर भी बहुत ही तात्त्विक चिन्तन प्रस्तुत किया ।
प्रो पण्डित ने कहा कि पुस्तकालय किसी भी विश्वविद्यालय का केंद्र स्थल होता है । अतः कुछ लोगों ने भारत की सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक साक्ष्यों की दुर्वयाख्या कर के जो नैरेशन बनाया है उसको भारतीय संदर्भों की दृष्टि से पुनर्भाषित किये जाने की आवश्यकता है , ताकि इस विष रुपी प्रोपेगेंडा को समाप्त किया जा सके । उन्होंने एनसीआरटी से प्रकाशित पुस्तकों में जो समुचित तथ्य नहीं है , उन पर आपत्ति जताते परिमार्जित करने की भी बात कही ।
डा जोशी ने कहा कि पुस्तकालय का डिजिटल किया जाना समय की मांग है । लेकिन यह भी चिन्ता की कोई कम बात नहीं है कि पुस्तकें पाठकों के हाथों से थोड़ी दूर होतीं जा रही हैं। आईटी के युग में भी पुस्तकें अपनी पहचान नहीं खो सकती हैं ।
प्रो गौड़ ने मंत्री जी का वाचिक स्वागत करते हुए सीएसयू तथा आईजीएनसीए के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित इस महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक राष्ट्रीय संगोष्ठी के लक्ष्य पर प्रकाश डाला। पुस्तकालयाध्यक्ष, सीएसयू डा गुप्त सिम्पोजियम के प्रास्ताविक को प्रस्तुत किया ।
प्रो वरखेड़ी ने कहा कि आज की सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में संस्कृत ग्रंथों का औटोमेशन इसलिए आवश्यक है कि भारतीय ज्ञान परम्परा की आधार भूमि संस्कृत साहित्य ही है और संस्कृत तथा आईकेएस की आज पूरी दुनिया को आवश्यकता है । साथ ही साथ उन्होंने यह भी कहा कि एक सच्चा पुस्तक स्वयं पढ़ता है ,तभी वह पाठक को मार्गदर्शन दे सकता है । उन्होंने विद्वत सभा के समक्ष कौन्सोरेटियम फौर संस्कृत विश्वविद्यालय का प्रस्ताव कुलपति प्रो वरखेड़ी ने रखा , जिसकी कर तल ध्वनि से स्वागत किया गया । इसमें प्रो रमेश भारद्वाज, कुलपति ,महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय,कैथल तथा मुरली मनोहर पाठक, कुलपति,श्रीलाबशारा संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली तथा कुलसचिव ,प्रो आर जी मुरली कृष्ण, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली भी उपस्थित रहें । प्रो वरखेड़ी ने कहा कि इसकी स्थापना अपने आप में एक इसलिए आवश्यक कहा जा सकता है कि इससे देश भर के सभी संस्कृत विश्वविद्यालय अपने अपने ज्ञान सम्पदा को एक दूसरे के लिए विनमय करेंगे जो शोध और भारतीय ज्ञान परम्परा को समृद्ध करेंगे ।
इसके अतिरिक्त अनेक अनेक शोध पत्रों का वाचन किया गया तथा पुस्तकालय विज्ञान में योगदान देने वालों को पुरस्कृत भी किया गया ।
इसके अतिरिक्त सन्ध्या वेला में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी किया गया ।

