अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती: सादगी, सिद्धांत और कुशल रणनीति के प्रेरणास्रोत

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By Pawan Sharma

नई दिल्ली। आज भारत के महान नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती है। ग्वालियर में 25 दिसंबर 1924 को जन्मे अटल ने अपने जीवन में सादगी, सिद्धांत और दूरदर्शी सोच से राजनीति को नई दिशा दी। चार दशकों तक संसद में देश का प्रतिनिधित्व करने वाले वाजपेयी ने भारत के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल पूरा करके इतिहास रचा। 

सादगी और सिद्धांत का जीवन
अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन का हर पहलू सादगी और सिद्धांतों से प्रेरित था। एक किस्सा बताता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी वह सादा जीवन जीते थे। प्रधानमंत्री आवास पर उनकी दिनचर्या साधारण व्यक्ति की तरह होती थी। उनकी ईमानदारी और सहनशीलता ने विरोधियों का भी दिल जीता। 

कुशल रणनीतिकार और लोकप्रिय नेता
अटल जी की कुशल रणनीति का उदाहरण 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण था, जिसने भारत को वैश्विक स्तर पर मजबूती प्रदान की। अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद उन्होंने साहसिक निर्णय लिया और भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया। 

काव्यात्मक व्यक्तित्व
वाजपेयी न केवल एक कुशल राजनेता थे, बल्कि उनके कवि हृदय ने उन्हें जनता के करीब ला दिया। उनकी कविताएँ ‘कदम मिलाकर चलना होगा’ और ‘गीत नया गाता हूँ’ आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। 

सबसे यादगार पल
संसद में दिए उनके भाषणों ने न केवल जनता को बल्कि उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को भी प्रभावित किया। उनका एक प्रसिद्ध वाक्य, “सरकारें आएंगी और जाएंगी, पार्टियां बनेंगी और बिगड़ेंगी, लेकिन यह देश रहना चाहिए,” भारतीय राजनीति का मील का पत्थर बन गया। 

अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत हमें सिखाती है कि सादगी और सिद्धांतों के साथ कैसे बड़े लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं। उनकी जयंती पर देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है और उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प लेता है।

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