बारादरी में गूंजे अज़्म, अंजू, रमा, गौहर, गुलशन, मासूम, सिंघल, उर्वी, तरुणा व नेहा के तराने

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By Pawan Sharma

गाजियाबाद। ‘बारादरी’ की महफ़िल के अध्यक्ष अज्म शाकिरी ने कहा कि देश दुनिया में बारादरी अब किसी पहचान की मोहताज नहीं है‌। उन्होंने कहा कि अपने अदब के सफर में बारादरी ने एक खास मुकाम हासिल कर लिया है। अपनी विशिष्टता की वजह से ही बारादरी की नसिशतें मुशायरों से आगे निकल गई हैं। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि अंजू सिंह ने कहा कि ऐसे आयोजन अदब को समृद्ध करते हैं। इस अवसर पर जीवन पर्यंत साहित्य सृजन के लिए डॉ. राम सिंह, नेहा वैद और तरुणा मिश्रा को ‘बारादरी सृजन सम्मान’ से अलंकृत किया गया।

नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में बारादरी का शुभारंभ डॉ. तारा गुप्ता की सरस्वती वंदना से हुआ। महफ़िल को अपने अशआर से नवाजते हुए अज़्म शाकिरी ने कहा ‘अजीब हालत है जिस्म ओ जां की, हजार पहलू बदल रहा हूं, वो मेरे अंदर उतर गया है, मैं खुद से बाहर निकल रहा हूं। अभी अंधेरे बहुत मिलेंगे, अभी मोहब्बत की पहली शब है, तुम अपनी शामें बचा के रखो, चराग बन कर मैं जल रहा हूं।’ उन्हें इन शेरों ‘बेच आए हैं खुद को सस्ते में, अब खड़े रो रहे हैं रास्ते में, कितने जहरीले हो गए हैं हम, सांप भी डर रहे हैं डसने में’ पर भी जमकर दाद मिली। ‌उनका यह शेर ‘रात भर ओस में भीग कर चांद को ऐसी सर्दी लगी, सारा दिन धूप में बैठकर अपने कपड़े सूखता रहा’ भी खूब सराहा गया। अंजू सिंह के शेर ‘नजर में आ गया मंजर पुराना, मिला ब्लेजर में पेपर पुराना। बड़ी दिलचस्प होगी यह लड़ाई, नया राजा है और लश्कर पुराना’ भी सराहे गए। गोविंदा गुलशन ने फरमाया ‘जादू शिफत लगी मुझे पत्थर की रोशनी, मुझको भी खींच लाई तेरे दर की रोशनी। सूरज खड़ा रहा लब ए हासिल सहर के वक्त, पानी से छन के आई बराबर की रोशनी।’
बारादरी की संस्थापक अध्यक्ष डॉ. माला कपूर ‘गौहर’ ने अपने अशआर ‘नींद का ऐसा सिलसिला रखना, ख्वाब में ख्वाब का पता रखना। तंज कर लेना शौक से लेकिन, सामने पहले आईना रखना’ पर भरपूर दाद बटोरी। सुरेंद्र सिंघल ने कहा ‘इस उस से मिलता हूं क्यों, इतना भी तन्हा हूं क्यों। बंद दिमागों को डर है, मैं उनमें खुलता हूं क्यों?’ मासूम गाजियाबाद की यह पंक्तियां ‘आप जब तकिए के नीचे रखकर खंजर सोएंगे, लाजमी है ख्वाब में मकतल का मंजर देखना’ भी खूब सराही गईं। डॉ. राम सिंह ने कहा ‘तुम्हें कैसे पता होगा मैं कैसे दौर से गुजरा, मेरी तन्हाईयां चुप थीं मगर मैं शोर से गुजरा। दिल की जमीन पर हम कुछ इस तरह से रोए, जैसे कोई बादल अपना ही तन भिगोए।’ उर्वशी अग्रवाल उर्वी ने कहा ‘जैसी तेरी प्रेम कहानी वैसी मेरी कहानी है अब तो सोच लिया है तुझ से प्रीत निभानी है, कौन बताए इश्क का मतलब, वो कोई नादान नहीं, मेरी आंखों में आसूं थे, उसने सोचा पानी है’। तरुणा मिश्रा ने कहा ‘दरिया किसी की प्यास का सहरा से जा मिला, दोनों ने अपनी तिश्नगी आपस में बांट ली। ऊला थीं उसकी आंखें तो सानी मेरी नज़र, इक रोज़ हमने शाइरी आपस में बांट ली।’ नेहा वैद ने अपने गीतों पर जम कर दाद बटोरी। डॉ. तारा गुप्ता ने कहा ‘उसका दिल तो बेघर हैं, शायद कोई शायर है। गज़लें सब हिम्मत वाली, कहता वो समझा कर है। ‘अपनी अलग शैली के लिए विख्यात डॉ. ईश्वर सिंह तेवतिया की इन पंक्तियों ‘धारा के संग बह जाने को, कैसे काम अनोखा लिख दूं?, कमजोरों को धमकाने को कैसे काम अनोखा लिख दूं? अगर आइना ताकतवर को दिखलाते तो लिख भी देता,
ताकतवर के गुण गाने को कैसे काम अनोखा लिख दूं’ को जमकर दाद मिली। मंजू मन की क्षणिका ‘मुझे पता है मेरे जाने के बाद भी मैं थोड़ा बनी रहूंगी, जैसे रह जाती है खंडहर होते मंदिर में, कभी गूंजी नूपुरों की झंकार, सुबह के चुंधियाते उजाले में, ठिठका चंद्रमा’ और ऋचा सूद की क्षणिका ‘कल की रात बहुत भारी थी, कल की रात बहुत भारी थी, जाने कितनी ही करवटों ने मुझ में गुजारी थी’ भी सराही गईं। कार्यक्रम का संचालन खुश्बू सक्सेना ने किया। उन्होंने फरमाया ‘दिल को पत्थर बन कर देखते हैं, उससे नज़रें चुरा के देखते हैं। दिल को तस्कीन की जरूरत है, दर्द को गुनगुना कर देखते हैं।’ सुभाष चंदर, विपिन जैन, आलोक यात्री, डॉ. सुधीर त्यागी, सुरेंद्र शर्मा, कीर्ति रतन, इंद्रजीत सुकुमार व संजीव निगम ‘अनाम’ की रचनाएं भी सराही गईं।

इस अवसर पर सुभाष अखिल, डॉ. वीना मित्तल, राष्ट्र वर्धन अरोड़ा, नित्यानंद तुषार, ओंकार सिंह, सत्य नारायण शर्मा, अक्षयवरनाथ श्रीवास्तव, राकेश कुमार मिश्रा, सुमन गोयल, वागीश शर्मा, तुलिका सेठ, वीरेन्द्र सिंह राठौर, संजीव शर्मा, तिलक राज अरोड़ा, कविता अरोड़ा, अशहर इब्राहिम, शशिकांत भारद्वाज, प्रताप सिंह, उत्कर्ष गर्ग, डॉ. नितिन गुप्ता, दीपा गर्ग, डी. डी. पचौरी, हरेंद्र कुमार, विनय लक्ष्मी, यश शर्मा व टेकचंद सहित बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे।

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